सुन्नियों का ALLAH Ke Baare Me Aqida है कि अल्लाह तआला हर जगह मौजूद है मगर ज्यादातर लोग यह नहीं जानते हैं कि किस तरंह मौजूद है, यहीं बदमज़हब लोग यह सवाल खड़ा कर देते हैं कि अच्छा तो आपका अक़ीदा यह है कि अल्लाह तआला हर जगह मौजूद है तो क्या (माज़ल्लाह) अल्लाह तआला टॉयलेट में भी मौजूद है क्या? जहां गन्दगी कूड़ा पड़ा है वहां भी मौजूद है? फिर वो कहता है यह अक़ीदा सही नहीं है बल्कि अल्लाह तआला तो अर्श-ऐ-आज़म पर रहता है और यही सलफ का अक़ीदा था (और दलील दे देता है क़ुरान की सूरेह ताहा आयत नंबर-5 से जिसमें अल्लाह फरमाता है:“Arrahmano Alal Arshistawa” “वह बड़ी मेहर वाला, उसने अर्श पर इस्तवा फ़रमाया जैसा कि उसकी शान के लायक है”) बस यहाँ पर आकर कम इल्म सुन्नी जवान हथियार डाल देते हैं क्योंकि पूरी बात और सही अक़ीदा को कभी समझा ही नहीं और शायद कभी जानने की कोशिश भी नहीं की। चलिए हम लोग ध्यान से अहले सुन्नत व जमाअत का अल्लाह के बारे में सही अक़ीदा समझने की एक छोटी सी कोशिश करते हैं अल्लाह क़ुबूल फरमाये।
अल्लाह के बारे में अक़ीदा
अल्लाह के बारे में अक़ीदा-ए-अहले सुन्नत व जमाअत (जो मैं समझ सका) : “अल्लाह तआला अपने इल्म-ओ-क़ुदरत से हर जगह मौजूद है (ध्यान देने वाली बात है ज़ाती ऐतबार से नहीं बल्कि इल्म के ऐतबार से) और ज़ाती ऐतबार से जैसा अज़ल से है वैसा ही है और वैसा ही रहेगा” यानी अल्लाह का इल्म हर जगह मौजूद है पूरी क़ायनात की एक ज़र्रा बराबर जगह भी ऎसी नहीं जो अल्लाह के इल्म-ओ-क़ुदरत से खाली हो। जैसा कि आयतल कुर्सी में आता है कि उसकी (अल्लाह की) कुर्सी ने ज़मीन-ओ-आसमान को घेरा हुआ है और इसी तरंह सूरह ताहा में आया है कि अल्लाह ने अर्श पर इस्तवा फ़रमाया, “इस्तवा” जो अरबी लफ्ज़ है जिसके मायने होते हैं सीधा होना, काबू पाना, क़ायम होना और इसके मायने बैठने के भी आते हैं। क्योंकि अल्लाह तआला जिस्म और मकान से पाक है इसलिए इसके यह मायने समझना सही नहीं है कि जिस तरंह कोई इंसान तख़्त पर बैठता है इस तरंह (माज़ल्लाह) अल्लाह तआला भी अर्श पर बैठा हुआ है। इस्तवा अल्लाह तआला की एक शिफ़त है जिसकी ठीक-ठीक कैफ़ियत अल्लाह तआला के सिवा कोई नहीं जनता यानि यह आयत-ए-मुताशाबेहात् में से है। आयत-ए-मुताशाबेहात उन आयात को कहते हैं जिनके ज़ाहिरी अल्फ़ाज़ कुछ और होते हैं और मफ़हूम कुछ और होता है जिसकी खोद-कुरेद करने के लिए सूरह आले-इमरान के शुरू में खुद क़ुरान-ऐ-करीम ने मना फ़रमाया है इसीलिए इस्तवा का कुछ भी तर्जुमा करना मुगालता पैदा कर सकता है जिस बिना पर उलेमा-ए-अहलेसुन्नत ने इसका (इस्तवा का) तर्जुमा नहीं किया है, ना इस पर कोई अमली मसअला मौक़ूफ़ है इतना ही ईमान रखना काफी है कि अल्लाह तआला ने अपनी शान के मुताबिक़ इस्तवा फ़रमाया जिसकी हक़ीक़त हमारी limited अक़्ल के इदराक से बाहर है।
दलील
अब इसकी एक दलील देखते हैं जैसे कि हम कहते हैं कि अल्लाह तआला क़ुरान में फ़रमा रहा है जो की Male की तरफ इशारा है इसी तरंह से फ़रमा रही है इसमें Female की तरफ़ इशारा है, मगर अल्लाह तआला इंसानों की तरंह Male या Female होने से पाक है मगर हम कहते हैं कि अल्लाह तआला फरमा रहा है लेकिन उसको इस शिफ़त में नहीं गिना जा सकता तो इस तरंह यह मुताशाबेहात में से है जिसके बारे में क़ुरान-ऐ-करीम में साफ़ बता दिया गया है कि इसके बारे में ज़्यादा खोज़-कुरेद मत करो वर्ना ईमान से चले जाओगे लिहाज़ा जो साफ़-साफ़ खुली आयतें और निशानियाँ हैं उन पर अमल करो और इससे कोई अमली फ़रक़ नहीं पड़ता है इसलिए ज़्यादा गहराई में जाने की ज़रूरत नहीं है गहराई में जाने की ज़रूरत वहां है जहां कोई अमली फ़रक़ पड़ता हो इससे अमल का कोई ताल्लुक़ नहीं है अक़ीदे का ताल्लुक़ है और अक़ीदा यही है कि अल्लाह तआला अर्श पर अपनी शान के लायक इस्तवा फ़रमाये हुए है। इसी तरंह से अल्लाह की कुर्सी ने ज़मीन-ओ-आसमान को घेरा हुआ है इसके मायने यह नहीं हैं कि जैसे हम लोग कुर्सी पर बैठते हैं इस तरंह से, एक बहुत बड़ी कुर्सी है और (माज़ल्लाह) अल्लाह तआला उस पर बैठा हुआ है और उसकी कुर्सी इतनी बड़ी है कि उसने पूरी ज़मीन-ओ-आसमान को घेर रख्खा है ऎसा नहीं है बल्कि यहाँ मुराद यह है कि अल्लाह के इल्म और कुदरत (ताक़त) ने पूरी क़ायनात (Whole Universe) को घेरा हुआ है।
अल्लाह की ज़ात और शिफ़ात
अल्लाह की ज़ात में ज़्यादा ग़ौर करने से अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने खुद मना फ़रमा दिया आपने इरशाद फ़रमाया अल्लाह की शिफ़ात में गौर करो, अल्लाह की ज़ात में गौर ना करो क्योंकि तुम्हारी अक़्ल अल्लाह की ज़ात का इदराक नहीं कर सकती है। क़ुरान में आया है कि अल्लाह तआला किसी शय के मिस्ल नहीं है यानी अल्लाह के जैसी कोई शय है ही नहीं तो अल्लाह का तसव्वुर कैसे आएगा? क्योंकि हमारा दिमाग़ वही तस्वीर सोंच सकता है जैसी या जिसके जैसी हमने कोई देखी हो यानि हमारे दिमाग़ में पहले से ही पड़ी हो तो अल्लाह तआला फरमाता है कि उसके मिस्ल कोई शय है ही नहीं तो जितने तस्सवुरात हमारे दिमागों में मौजूद हैं वो अल्लाह के मुशाबेह हैं ही नहीं तो अल्लाह का तस्सवुर कैसे आएगा? इसीलिए फ़रमाया अल्लाह की ज़ात में ग़ौर करो ही नहीं, तुम्हारी अक़्लें अल्लाह की ज़ात का इदराक नहीं कर सकतीं। इसीलिए यही मुमानियत इस बात पर ग़ौर करने पर भी आएगी की अल्लाह तआला कहाँ यानि किस मक़ाम पर है? क्योंकि अल्लाह तआला जिस्मानियत से पाक है उसके बारे में यह तसव्वुर नहीं कर सकते कि वो कहाँ है? ज़ात में ग़ौर करने से मना कर दिया गया है कि ज़मीन पर है या आसमान पर है या यहाँ है वहां है यह हम बिल्कुल ग़ौर नहीं कर सकते बस इतना ही काफी है कि अल्लाह तआला अज़ल से जैसा है वैसा ही रहेगा और वो पूरी क़ायनात को अपने इल्म और क़ुदरत के ऐतबार से घेरे हुए है यानी अल्लाह तआला हर चीज़ जानता है, छोटी सी चूंटी के क़दमों की सरसराहट भी अल्लाह को मालूम है।
अल्लाह हर जगह मौजूद है
अल्लाह हर जगह मौजूद है का मतलब, जिस्मानी लिहाज़ से (मौजूद) नहीं क्योंकि अल्लाह का कोई जिस्म नहीं है तो हम सुन्नी अल्लाह को हर जगह जिस्मानी लिहाज़ से मौजूद नहीं मानते हैं बल्कि इल्म और क़ुदरत के ऐतबार से मौजूद मानते हैं। इसी तरंह अल्लाह तआला के लिए कोई एक दिशा (direction) fix करना भी मना है क्योंकि हम बदमज़हबों की तरंह अल्लाह को किसी एक मक़ाम पर मानते ही नहीं जैसे उनका अक़ीदा है कि अल्लाह अर्श पर रहता है अब अर्श कहाँ है? ऊपर है सातों आसमानों के ऊपर तो ऊपर की तरफ़ दिशा मुक़र्रर हो गई जो कि अल्लाह की शान नहीं तो जिस तरंह अल्लाह तआला जिस्मानियत से पाक है तो वैसे ही सम्त (direction) से भी पाक है तो यह साबित नहीं किया जा सकता कि कहाँ है? तो बदमज़हब अक़्सर यह सवाल करते हैं कि अच्छा अगर अल्लाह ऊपर (अर्श) पर नहीं है तो “अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) मेराज की रात कहाँ गए थे (क्या ऊपर नहीं गए थे?)” क्योंकि हदीसों में आया है कि आसमान की तरफ़ गए थे अब अगर आसमान की तरफ़ मान लें तो अल्लाह के लिए ज़मीन खाली माननी पड़ेगी और सिर्फ़ आसमान पर अल्लाह के वुजूद को मानना पड़ेगा जो कि कुफ़्र है तो फिर प्यारे नबी (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ऊपर क्यों गए थे?
इमाम-ए-अहले सुन्नत “आला हज़रत“
इमाम-ए-अहले सुन्नत सरकार आला हज़रत (राह्मतुल्लाहे तआला अलैहे) फरमाते हैं: “ख़िरद से कह दो कि सर झुका ले, गुमाँ से गुज़रे गुजरने वाले, पड़े हैं यहाँ खुद जिहद को लाले किसे बताएं कहाँ गए थे” तो यह तो हम इंसानो के समझाने के लिए है कि ऊपर आसमान की तरफ़ गए थे हक़ीक़त में कहाँ गए थे यह कोई नहीं जानता अल्लाह और उसके प्यारे हबीब (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) के सिवा, यह अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) के बीच में एक राज़ है। अल्लाह मकान (जगह) से पाक है तो कहाँ (यानी) लामकां गए थे जो कहाँ है अल्लाह और उसका रसूल ही बेहतर जानें।
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अल्लाह तो अल्लाह है उसमे कोई तग़ैयुर यानि बदलाव नहीं आ सकता जैसा अज़ल से है वैसा ही रहेगा यानि यह अल्लाह की शान नहीं कि पहले कहीं और था और बाद में सब कुछ बनाने के बाद अर्श पर जाकर बैठ गया। उम्मीद है कि काफी कुछ यह पोस्ट पढ़ने के बाद समझ आ गया होगा अगर आपको लग रहा है कि इससे आपने कुछ सीखा-समझा है तो मुझ गुनहगार को भी दुआ-ऐ-ख़ैर से नवाज़ें। अल्लाह से दुआ है कि हम सबको इल्म-ए-दीन सीखने की भूख अता फ़रमाये और दुनियाबी व् दीनी इल्म की सही समझ अता फ़रमाये…आमीन।
Mashallah bahut achhi infor h,,, haq wayani h
Mashaa Allah. Bhut khoob
Tum woh musalman ho jinke purvaj Vedic Dharma follow karte the kyonki Brahm ko bhi har jagah mana Gaya hai. Brahm ka koi body nahi hain aur Brahm naa toh male Hain naa female aur naa usko normal eyes se dekha Jaa sakta hai. Toh tumhare purvaj ko topi pehnake musalman banaya gaya hai. Vedic Dharma main wapas aa jao aur atankwadi Banna band karo.
Tum wo nasoor ho Jo kabhi ni sudhroge hamesha ache kaam me tang ladaoge iske alawa to tumhe kuch ata nahi h khud k purvaj ke baare me padle phir bhaukna yaha aker
Allah ke bare me jiska aqeeda sahi hoga wahi mazhab sacha mana jayega.ye concept sirf islam hi deta ha ki allah ta aala apni zaat o sifat me akela ha n uski zaat me koi shareek ha na uski sifaat yani quality me.
Ab islam ke alawa aur koi bhi mazhab dekh lo jaise .isayi kahte ha ki isa A.S allah ke bete hain.
Yahudi uzair A.S ko isi tarah mante ha ab aa jao aap apne hindu ya brahma me to apke yaha bhi yahi mamla ha ki lakho bhagwan aapke yaha ishwar ka awtar bataye jate ha ..aap kahte ho ki kabhi ishwar brahma ha kabhi wo ram banke zameen pe aa gaya kabhi krishan banke aa gaya kabhi koi devta kabhi koi devta yani apke ishwar insan ka roop leke dharti pe aaya aur wo sab kaaam kiye jo insan karta ha phir wo mar gaya jaise apke kitne hi bhagwan jinko ap bhagwan kahte ho wo duniya me apke ishwar ka roop leke aaye aur mar bhi gaye.
Musalman jis allah ki pooja karte ha uske siwa kisi ko us jaisa nahi maante.n uski zaat me na sifaat me.wo akela ha usi ne sabko paida kiya wahi sabko maut deta ha aur marne ke bad dobara hisab o kitab ke liye qayamat me zanda karega.na wo kisi ka baap ha. Na kisi ka beta.usne sabko paida kiya usko kisi ne nahi banaya wo hamehsa se hai aur hamesha rahega usko fanaa nahi ha baki har chiz khatam hone wali ha.aur kisi mazhab me is baat ka concept hi nahi ha..
Baba Adam Alhesalam Maa Habba ke bare main apne kise padhe likhe pandit se punchna woh bataingaybye musalman the aur tum apne raste se bhatke hue unhe ke aulad ho so tum seedhe Raste per aa jao sirk se tuba karke muslim ho jao duniya aur akhirat sudhar jayegy.
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